memories forever
Thursday, September 8, 2022
एक तरीका ऐसा भी
Friday, December 17, 2021
*बड़ा दिल*
*पुरानी साड़ियों के बदले बर्तनों के लिए मोल भाव करती एक सम्पन्न घर की महिला ने अंततः दो साड़ियों के बदले एक टब पसंद किया . "नहीं दीदी ! बदले में तीन साड़ियों से कम तो नही लूँगा ." बर्तन वाले ने टब को वापस अपने हाथ में लेते हुए कहा .*
*अरे भैया ! एक एक बार की पहनी हुई तो हैं.. ! बिल्कुल नये जैसी . एक टब के बदले में तो ये दो भी ज्यादा हैं , मैं तो फिर भी दे रही हूँ . नहीं नहीं , तीन से कम में तो नहीं हो पायेगा ." वह फिर बोला .*
*एक दूसरे को अपनी पसंद के सौदे पर मनाने की इस प्रक्रिया के दौरान गृह स्वामिनी को घर के खुले दरवाजे पर देखकर सहसा गली से गुजरती अर्द्ध विक्षिप्त महिला ने वहाँ आकर खाना माँगा...*
*आदतन हिकारत से उठी महिला की नजरें उस महिला के कपडों पर गयी.... अलग अलग कतरनों को गाँठ बाँध कर बनायी गयी उसकी साड़ी उसके युवा शरीर को ढँकने का असफल प्रयास कर रही थी....*
*एकबारगी उस महिला ने मुँह बिचकाया . पर सुबह सुबह का याचक है सोचकर अंदर से रात की बची रोटियाँ मँगवायी . उसे रोटी देकर पलटते हुए उसने बर्तन वाले से कहा -*
*तो भैय्या ! क्या सोचा ? दो साड़ियों में दे रहे हो या मैं वापस रख लूँ ! "बर्तन वाले ने उसे इस बार चुपचाप टब पकड़ाया और दोनों पुरानी साड़ियाँ अपने गठ्ठर में बाँध कर बाहर निकला...*
*अपनी जीत पर मुस्कुराती हुई महिला दरवाजा बंद करने को उठी तो सामने नजर गयी... गली के मुहाने पर बर्तन वाला अपना गठ्ठर खोलकर उसकी दी हुई दोनों साड़ियों में से एक साड़ी उस अर्ध विक्षिप्त महिला को तन ढँकने के लिए दे रहा था ! !!*
*हाथ में पकड़ा हुआ टब अब उसे चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था....! बर्तन वाले के आगे अब वो खुद को हीन महसूस कर रही थी . कुछ हैसियत न होने के बावजूद बर्तन वाले ने उसे परास्त कर दिया था ! !! वह अब अच्छी तरह समझ चुकी थी कि बिना झिकझिक किये उसने मात्र दो ही साड़ियों में टब क्यों दे दिया था .
Tuesday, August 15, 2017
*सुन ससुराल*
*सुन ससुराल*----------
*अच्छा लगता हैं तेरा साथ*
*अब तक जो किया सफर*
*थामकर तेरा हाथ*
*पहला पाँव जब धरा था*
*तेरे नाम से ही मन डरा था*
*बिन आवाज़ थालियों को उठाया था*
*साड़ी में एक एक कदम डगमगाया था*
*रस्मों रिवाजों को मैने तहेदिल से निभाया था*
*खनकती चुड़ियों से कड़छी को चलाया था*
*डरते डरते पहली बार खाना बनाया था*
*बस ऐसे ही मैंने*
*सबको अपना बनाया था*
*सुन ससुराल*-------
*तुम साक्षी हो मेरे एक एक पल के*
*वो पिया मिलन*
*वो पहली बार जी मिचलाना*
*खट्टी चीज़ों पर मन ललचाना*
*वो पहली बार*
*अपने अंदर जीवन महसूस करना*
*कपड़े सुखाने आँगन में डोलना**
*पापड़ का कच्चा कच्चा सा सेंकना*
*गोल रोटी के लिये जद्दोजहद करना*
*दाल का तड़का, दूध का उफनना*
*कटी हुई भिंडी को धोना*
*पहली बार हलवे का बनाना*
*पहली दिवाली पर दुल्हन सी सजना*
*तीज व करवा चौथ पर मनुहार* *करवाना*
*हाँ ससुराल*
*तुम्हीं ने दिये ये अनमोल पल*
*वधु बन आयी थी*
*तुम्हीं थे जिसने सर आँखों बैठाया*
*बड़े स्नेह से अपनापन जताया*
*यही आकर मैंने सब सीखा और जाना*
*क ब किसे मनाना तो कब किसे सताना*
*एक ही समय में*
*मैंने कितने किरदारों को निभाया*
*खुद को खो खोकर मैंने खुद को* *पाया*
*सुन ससुराल*---------
*मायके के आगे भले ही*
*हमेशा उपेक्षित रहे तुम*
*लेकिन*
*फिर भी मेरे अपने रहे तुम*
*मायके में भी मेरा सम्मान रहे तुम*
*मेरे बच्चों की गुंजे जहाँ* *किलकारियाँ*
*वो आँगन रहे तुम*
*मेरे हर सुख दुख के साक्षी रहे तुम*
*सुन ससुराल*--------
*पीहर की गलियाँ याद आती हैं*
*गीत बचपन के गुनगुनाती हैं*
*लेकिन*
*मायके में भी तेरी बात सुहाती हैं*
*तेरा तो ना कोई सानी हैं*
*तू ही तो मेरे उतार चढ़ाव की कहानी हैं*
*कितने सबक़ तुने सिखाये*
*पाठशाला ये कितनी पुरानी हैं*
*सुन ससुराल*--------
*अब तू ससुराल नहीं मेरा घर हैं ।*...
Wednesday, July 22, 2015
"सुख" का पता "
क्या. तेरा कोई. स्थायी. पता. है
आखिर. क्या है तेरा ठिकाना।
पर. तू न. कहीं मिला मुझको
बड़ी बड़ी दुकानों. में
चोटी. के. धनवानों. में
बल्कि मुझको. ही पूछ. रहे. थे
ये सुख आखिर कहाँ रहता है?
जो सुबह शाम. अक्सर. मिलता था
पर ये कोशिश भी काम न आई
हौसले थकान. पे. है
अब. भी. बची हुई. है आस
सुख. के. रहस्य को. जानूंगा
मेरे साथ रहा करता. था
मेरा. सुख मुझसे जुदा. हो गया।
जारी रखी उसकी तलाश
क्या. मुझको. ढूंढ. रहा है भाई
तेरे. ही. घर. में. बसा. हुआ. हूँ
सिक्कों. में. मुझको. न. तोल
हारमोनियम की. तानों में. हूँ
"परिवार" के. संग. जीने. में
रसोई घर के पफवानो में
माँ की निश्छल ममता में हूँ
और अक्सर तुझसे कहता हूँ
बंद कर दे तु मेरी तलाश
आज को जी ले कल की न सोच
**लोहे और हीरे में फर्क**
चेहरे पर झलकता आक्रोश
बालिका ने कहा- महाराज हमारे समाज में लड़कों को हर प्रकार की आजादी होती है। वह कुछ भी करे, कहीं भी जाए उस पर कोई खास टोका टाकी नहीं होती।
इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है। यह मत करो, यहाँ मत जाओ, घर जल्दी आ जाओ आदि।
संत मुस्कुराए और कहा...
बेटी तुमने कभी लोहे की दुकान के बाहर पड़े लोहे के गार्डर देखे हैं? ये गार्डर सर्दी, गर्मी, बरसात, रात दिन इसी प्रकार पड़े रहते हैं।
इसके बावजूद इनका कुछ नहीं बिगड़ता और इनकी कीमत पर भी कोई अन्तर नहीं पड़ता। लड़कों के लिए कुछ इसी प्रकार की सोच है समाज में।
क्योंकि जौहरी जानता है कि अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी।
जरा सी खरोंच से उसके और उसके परिवार के पास कुछ नहीं बचता।
बस यही अन्तर है लड़कियों और लड़कों में।
उस बेटी के साथ पूरी सभा की आँखों में छाई नमी साफ-साफ बता रही थी लोहे और हीरे में फर्क।।।
Sunday, July 19, 2015
🌼🌼🌼 ●आस्था और विश्वास
है ... मेरे प्रिय.----.सुबह तुम जैसे ही सो कर उठे,
मैं तुम्हारे बिस्तर के पास ही खड़ा था ।
मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ बात करोगे ।
तुम कल या हुई किसी बात के लिये मुझे धन्यवाद कहोगे ।
लेकिन तुम चाय पी कर तैयार होने चले गए और मेरी तरफ देखा भी नहीं !
फिर मैंने सोचा कि तुम नहा के मुझे याद करोगे ।
पर तुम इस में लग गये कि तुम्हे आज कौन से कपड़े पहनने है !
फिर जब तुम जल्दी से नाश्ता कर रहे थे और
अपने ऑफिस के कागज़ इक्कठे करने के लिये,
घर में इधर से उधर दौड़ रहे थे.. तो भी मुझे लगा कि शायद
अब तुम्हे मेरा ध्यान आयेगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।
फिर जब तुमने आफिस जाने के लिए ट्रेन पकड़ी तो
मैं समझा कि इस खाली समय का उपयोग तुम मुझसे बातचीत करने में करोगे
पर तुमने थोड़ी देर पेपर पढ़ा और फिर खेलने लग गए अपने मोबाइल में और
मैं खड़ा का खड़ा ही रह गया ।
मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ हिस्सा,
मेरे साथ बिता कर तो देखो,तुम्हारे काम और भी अच्छी तरह से होने लगेंगे,
लेकिन तुमनें मुझसे बात ही नहीं की... एक मौका ऐसा भी आया
जब तुम बिलकुल खाली थे और कुर्सी पर पूरे 15 मिनट यूं ही बैठे रहे,
लेकिन तब भी तुम्हें मेरा ध्यान नहीं आया ।
दोपहर के खाने के वक्त जब तुम इधर- उधर देख रहे थे,
तो भी मुझे लगा कि खाना खाने से पहले तुम एक पल के लिये मेरे बारे में सोचोंगे,
लेकिन ऐसा नहीं हुआ । दिन का अब भी काफी समय बचा था ।
मुझे लगा कि शायद इस बचे समय में हमारी बात हो जायेगी,
लेकिन घर पहुँचने के बाद तुम रोज़ के कामों में व्यस्त हो गये ।
जब वे काम निबट गये तो तुमनें टीवी खोल लिया और घंटो टीवी देखते रहे ।
देर रात थककर तुम बिस्तर पर आ लेटे । तुमनें अपनी पत्नी,
बच्चों को शुभरात्रि कहा और चुपचाप चादर ओढ़कर सो गये।
मेरा मन था कि मैं भी तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूं..
कुछ वक्त बिताऊँ., कुछ सुनूं..., कुछ सुनाऊँ ताकि तुम्हें समझ आए कि
तुम किसलिए इस धरती पर आए हो और किन कामों में उलझ गए हो,
लेकिन तुम्हें समय ही नहीं मिला और मैं मन मार कर ही रह गया ।
मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ ।
हर रोज़ मैं इस बात का इंतज़ार करता हूँ कि तुम मेरा ध्यान करोगे और
अपनी छोटी छोटी खुशियों के लिए मेरा धन्यवाद करोगे ।
पर तुम तब ही आते हो जब तुम्हें कुछ चाहिए होता है ।
और अपनी माँगें मेरे आगे रख के चले जाते हो और मजे की बात तो ये है,
तुम मेरी तरफ देखते भी नहीं ।
ध्यान तुम्हारा उस समय भी लोगों की तरफ ही लगा रहता है,
और मैं इंतज़ार करता ही रह जाता हूँ ।
खैर कोई बात नहीं...हो सकता है कल तुम्हें मेरी याद आ जाये !
ऐसा मुझे विश्वास है और मुझे तुम में आस्था है ।
यह ना सोंच तेरे बगैर कुछ होगा नही यहा यहाँ रोज़ किसी को आना
किसीको जाना पड़ेगा .मोत से तुम नही मिटते । वो तो एक चोला बदलना ।
तुम जब तक मोह और लोभ को नही जानोगे तब तक मन को भी नही जानेगे ।
क्यों की संसार में हु । लेकिन इसलिए इसके पीछे नही पड़ना, नही भागना ।
— बीतता है समय यूँ ही, इतिहास बदलते रहते हैं
कुछ चलना छोड़ देते हैं, और कुछ बढ़ते ही जाते हैं.
------- मेरा दूसरा नाम... आस्था और विश्वास ही तो है ।
Thursday, July 16, 2015
बचपन वाला ****'रविवार'****
1.सन्डे को सुबह सुबह नहा-धो कर
टीवी के सामने बैठ जाना
नए गानों का इंतज़ार करना
3."जंगल-बुक"देखने के लिए जिन
दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका
घर पर आना
4."चंद्रकांता"की कास्टिंग से ले कर
अंत तक देखना
5.हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ना
चंद्रकांता में और हमारा अगले हफ्ते
तक सोचना
6.शनिवार और रविवार की शाम को
फिल्मों का इंतजार करना
7.किसी नेता के मरने पर कोई सीरियल
ना आए तो उस नेता को और गालियाँ
देना
8.सचिन के आउट होते ही टीवी बंद
कर के खुद बैट-बॉल ले कर खेलने
निकल जाना
9."मूक-बधिर"समाचार में टीवी एंकर
के इशारों की नक़ल करना
10.कभी हवा से ऐन्टेना घूम जाये तो
छत पर जा कर ठीक करना
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं
आता, दोस्त पर अब वो प्यार नहीं
आता।
जब वो कहता था तो निकल पड़ते
थे बिना घडी देखे,
अब घडी में वो समय वो वार नहीं
आता।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं
आता...।।।
वो साईकिल अब भी मुझे बहुत याद
आती है, जिसपे मैं उसके पीछे बैठ
कर खुश हो जाया करता था। अब
कार में भी वो आराम नहीं आता...।।।
जीवन की राहों में कुछ ऐसी उलझी
है गुथियाँ, उसके घर के सामने से
गुजर कर भी मिलना नहीं हो पाता...।।।
वो 'मोगली' वो 'अंकल Scrooz',
'ये जो है जिंदगी' 'सुरभि' 'रंगोली'
और 'चित्रहार' अब नहीं आता...।।।
रामायण, महाभारत, चाणक्य का वो
चाव अब नहीं आता, बचपन वाला वो
'रविवार' अब नहीं आता...।।।
वो एक रुपये किराए की साईकिल
लेके, दोस्तों के साथ गलियों में रेस
लगाना!
अब हर वार 'सोमवार' है
काम, ऑफिस, बॉस, बीवी, बच्चे;
बस ये जिंदगी है। दोस्त से दिल की
बात का इज़हार नहीं हो पाता।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं
आता...।।।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नही
आता...।।।